इस ब्रह्माण्ड में ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है - मनुष्य। प्रत्येक मनुष्य का जीवन विधाता की देन है। उसी ने हमें धरती पर भेजा है। प्राण और शरीर दिया है। इसे किसी से भी छीनने का अधिकार विधाता को ही है। किसी की ह्त्या करना या आत्महत्या करना - दोनों ही जघन्य अपराध हैं। महापाप हैं। आत्महत्या तो वैसा ही भयंकरतम क्रूर कृत्य है - जैसे कि किसी ताकतवर इन्सान द्वारा किसी नन्हें से अबोध शिशु की ह्त्या करना। लेकिन नन्हा शिशु तो नासमझ होता है। अबोध एवं शक्तिहीन होता है। अपनी जान बचाने के लिए वह किसी का विरोध नहीं कर सकता। किन्तु आप जब अपनी ह्त्या अर्थात आत्महत्या करते हैं तो आप नासमझ या अबोध नहीं होते, फिर भी आप अपना विरोध नहीं करते। खुद को समझाते भी नहीं। खुद को समझाइये। प्रभु के दिए शरीर का सदुपयोग कीजिये। उसे किसी भी असफलता, दुःख या क्षोभ के कारण नष्ट मत कीजिये। यही हमारी आपसे प्रार्थना है, विनती है –> Say No To Suicide. आत्महत्या मत कीजिये।
a story that touches your heart.....must read