प्यार तो बस प्यार है !
एक बहुत ही कुरूप कुबड़ा मूर्तिकार था ! लोग कहते थे - वह बहुत बदसूरत है, कभी कोई लड़की न तो उससे शादी करेगी, ना ही प्यार करेगी ! मूर्तिकार को भी लड़कियों से बहुत चिढ़ थी ! वह लड़कियों से सदैव दूरी बनाये रखता था !
मूर्तिकार अपने कार्य में इतना निपुण था कि लोग उसकी कला देखकर दाँतों तले उँगलियाँ दबा लेते थे ! उसकी बनाई मूर्तियां ऐसी सजीव लगती थीं कि लगता था अभी बोल उठेंगी !
एक दिन मूर्तिकार अपने किसी मित्र के यहाँ किसी फंक्शन में गया था तो अचानक उसकी नाक से बहुत तेज गन्ध टकराई ! गन्ध ऐसी थी कि मूर्तिकार पर नशा-सा छाने लगा ! मूर्तिकार ने घूमकर देखना चाहा कि गन्ध कहाँ से आ रही है, तभी एक युवती मूर्तिकार के निकट से गुजर गयी ! गन्ध उसी के शरीर से आ रही थी ! मूर्तिकार उस युवती की सिर्फ पीठ ही देख पाया, चेहरा ना देख सका ! युवती फंक्शन की भीड़ में खो गयी और फिर दोबारा उसे दिखाई नहीं दी !
मूर्तिकार अपनी कल्पनाओं में अक्सर उसका चेहरा बनाता रहता ! पर उसे कभी संतोष नहीं मिलता ! वो खुशबू हमेशा उसके दिलोदिमाग पर छाई रहती ! उसे एक बार देखने की इच्छा मूर्तिकार को अक्सर तड़पाती रहती ! मूर्तिकार ने खुशबुओं की उस रानी का नाम कल्पना रख दिया था !
कई वर्षों बाद मूर्तिकार ने अपने काम के लिए एक अच्छी कॉलोनी में एक फ्लैट खरीदा ! फ्लैट चौथी मंजिल पर था ! एक दिन मूर्तिकार अपने फ्लैट में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ रहा था कि खुशबुओं का एक झोंका उसकी नाक से टकराया ! मूर्तिकार ठिठक कर रुक गया ! यह खुशबू उसके लिए जानी- पहचानी थी !
उसने घूम कर देखा तो एक बेहद खूबसूरत युवती एक छोटी सी बच्ची की उंगली थामे सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी ! हाँ, वह वही थी ! मूर्तिकार की कल्पना ! मूर्तिकार को देखकर वह ठिठकी और मुस्कुराई ! फिर बोली - "आप मूर्तिकार हो न ?"
"हाँ, पर आप यह कैसे जानती हैं ?" मूर्तिकार ने पूछा !
कल्पना ने मूर्तिकार को उस फंक्शन की याद दिला दी, जिस में मूर्तिकार की नाक से पहली बार खुशबुओं का झोंका टकराया था ! उस फंक्शन ने कल्पना ने मूर्तिकार के बारे में सब जान लिया था ! पर मूर्तिकार पहली बार उसे देख रहा था ! और उसे यह भी मालूम हो गया कि कल्पना की दो साल पहले शादी हो गयी थी और अब वह एक सुन्दर सी गुड़िया की मम्मी है !
एक ही अपार्टमेंट के दो अलग-अलग फ्लैटों में रहने के कारण कल्पना और मूर्तिकार की अक्सर मुलाकात होने लगी ! दोनों काफी-काफी देर बातें करने लगे ! दोनों में काफी घनिष्ठता हो गयी ! अब कल्पना के बदन की खुशबू मूर्तिकार के दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाने लगी !
सच्चाई यह थी कि मूर्तिकार दिलोजान से कल्पना को प्यार करने लगा था, लेकिन कल्पना किसी और की पत्नी थी ! उसके पति की फ़िल्मी हीरो जैसी पर्सनालिटी थी, जबकि मूर्तिकार कुबड़ा और कुरूप था ! मूर्तिकार समझ गया था कि कल्पना की जिन्दगी में उसकी कभी भी कोई जगह नहीं बन सकती ! उसने अपना फ्लैट बेच दिया और बहुत दूर किसी और कॉलोनी में जाकर रहने लगा !
मूर्तिकार को कल्पना से दूर जाकर भी चैन नहीं मिला ! सुबह उठते ही उसे सबसे पहला ख्याल कल्पना का आता ! दिन में काम करते-करते भी हज़ारों बार कल्पना का अक्श, कल्पना की तस्वीर मूर्तिकार की आँखों के सामने नाच उठती ! कल्पना के बदन की खुशबू, उसकी हँसी, उसकी मुस्कराहट, उसकी आवाज़ मूर्तिकार को बेचैन और परेशान करती तो कभी-कभी रो पड़ता था मूर्तिकार !
रात को सोते वक्त वही हँसता-मुस्कुराता चेहरा मूर्तिकार की आँखों के सामने कौंध जाता और मूर्तिकार भगवान से प्रार्थना करता - 'हे भगवान, मेरी कल्पना को कभी कोई कष्ट नहीं देना ! उसे सदा सुखी रखना ! उसके हिस्से का हर कष्ट आप मुझे दे देना !'
मूर्तिकार चाहता था - कल्पना का ख्याल हमेशा के लिए उसके दिलोदिमाग से निकल जाए, पर जितना वह कल्पना को भुलाना चाहता, उतना ही कल्पना की यादें, उसकी बातें, उसकी मुस्कान, उसकी हँसी, उसके बदन की खुशबू उसे तड़पाती थीं ! अपने मन की शान्ति के लिए मूर्तिकार अपने खाली वक्त में अक्सर कल्पना की छोटी-बड़ी मूर्तियाँ बनाने लगा !
किन्तु बेजान मूर्तियों को देखकर उसे चैन नहीं मिलता ! एक दिन वह अपनी बनाई हुई कल्पना की मूर्ति देख रहा था, तभी उसके दिल में यह बात आई कि क्या ही अच्छा हो यदि इस मूर्ति में प्राण आ जाएँ ! एक बार यह बात दिल में आई तो रोज-रोज परेशान करने लगी ! धार्मिक स्वभाव के मूर्तिकार ने यह शक्ति हासिल करने के लिए विष्णु भगवान की कड़ी तपस्या करनी शुरू कर दी !
अब भगवान तो भगवान हैं ! किसी की वर्षों की तपस्या और भक्ति पर भी नहीं प्रसन्न होते ! मूर्तिकार पर जल्दी ही प्रसन्न हो गए ! प्रकट हुए और बोले - "कहो भक्त, कैसे याद किया ?"
मूर्तिकार बोला - "प्रभु, मैं एक मूर्तिकार हूँ ! आपने मुझे ऐसी कला प्रदान की है कि जो भी मूर्ति बनाता हूँ, एकदम सजीव लगती है ! पर मैं सचमुच सजीव मूर्तियां बनाना चाहता हूँ ! मैं चाहता हूँ कि मैं जो भी मूर्ति बनाऊँ - उन में प्राण भी फूँक सकूँ !"
भगवान हँसे - "मूर्तिकार ! प्राण लेना और प्राण देना तो विधाता का काम है ! तुम क्या विधाता बनना चाहते हो ?"
मूर्तिकार बोला - "नहीं प्रभु, मैं तो बस सजीव मूर्तियाँ बनाना चाहता हूँ !"
"पर सजीव मूर्तियाँ क्यों बनाना चाहते हो ?" भगवान ने कहा -"अभी जो मूर्तियाँ तुम बनाते हो ! उन्हें मोटे दामों पर बेचते हो ! खूब धन कमाते हो ! पर जब मूर्तियाँ सजीव इन्सान बन जाएंगी ! तब क्या तुम उन्हें बेच पाओगे ?"
मूर्तिकार तुरन्त ही कुछ भी न कह सका, तब भगवान स्वयं ही फिर से बोले - "मुझे मालूम है, तुम एक स्त्री से बेपनाह प्यार करते हो ! किन्तु वह तुमसे प्यार नहीं करती ! तुम उसकी मूर्ति बनाकर उसमे प्राण फूँकना चाहते हो ! फिर तुम उस मूर्ति से प्यार करना चाहते हो !"
मूर्तिकार ने सिर झुका लिया ! भगवान से भला क्या छिप सकता है !
भगवान फिर बोले -"तुम्हारे दिल की हालत समझ कर मैं तुम्हें एक मन्त्र बताता हूँ ! जिसके द्वारा तुम किसी भी एक मूर्ति में प्राण फूँक सकोगे ! मन्त्र पढ़ते ही मूर्ति जीती-जागती इन्सान बन जाएगी, किन्तु सिर्फ एक दिन के लिए ही वह इन्सान रहेगी ! ठीक चौबीस घण्टे बाद वह फिर से मूर्ति बन जाएगी ! और यह मन्त्र भी सिर्फ एक ही बार काम करेगा !"
यह कहकर भगवान ने मूर्तिकार को वह विशेष मन्त्र बताया और अंतर्ध्यान हो गए !
मूर्तिकार की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा !
उसने उसी दिन से कल्पना की एक मूर्ति बनानी शुरू कर दी ! दिन रात मेहनत करके कुछ ही महीनों में मूर्तिकार ने कल्पना की बेहद शानदार मूर्ति तैयार की ! मूर्ति इतनी खूबसूरत थी कि जो भी देखे देखता रह जाए ! सच्चाई यह थी कि मूर्ति असली कल्पना से भी बहुत ज्यादा खूबसूरत थी ! मूर्ति तैयार होने के बाद मूर्तिकार उस में प्राण फूँकने ही वाला था कि उसके दिल में एक विचार आया - 'क्यों न वह कल्पना को भी बुला ले और उसी के सामने मूर्ति में प्राण फूँके !'
मूर्तिकार कल्पना के घर गया ! किन्तु वहां जब उसने कल्पना को देखा तो बहुत दुखी हो गया ! कल्पना बीमार थी, पर उसके चेहरे की चमक, उसकी मुस्कराहट, उसकी हँसी, सब कुछ वैसी की वैसी थी ! पर वह बहुत दुखी थी और लगता था वह बहुत पीड़ा में है ! मूर्तिकार वापस अपने ठिकाने पर लौट आया ! उसने अपनी बनाई मूर्ति को देखा ! मूर्ति बहुत खूबसूरत थी ! पर उसे बेहद नकली लगी ! असली कल्पना से मिलकर जो आ रहा था ! मूर्तिकार ने मूर्ति में प्राण नहीं फूँके ! उसे एक चादर से ढँक दिया !
वक्त बीता ! मूर्तिकार ने एक विशाल स्टूडियो बना लिया और वहाँ लोगों को मिट्टी और पत्थर की कलाकृतियाँ बनाना सिखाने लगा ! उसके पास विश्व के कोने-कोने से मूर्तियां बनाने के आर्डर आते, जिसे वह और उसके शिष्य मिलकर पूरा करते थे! लेकिन कल्पना को मूर्तिकार अभी भी भूल नहीं पाया था ! कल्पना की मूर्ति आज भी उसके स्टूडियो के व्यक्तिगत कक्ष में एक कोने में चादर से ढँकी रखी थी !
मूर्तिकार के शिष्यों में एक शिष्य था - कृश ! कृश के हाथों में जादू था !
कृश को राधा नाम की सुन्दर युवती से बेहद प्यार था ! वह अपने मूर्तिकार गुरु से अक्सर राधा के बारे में बहुत सारी बातें करता रहता है !
मूर्ति बनाने में कृश की निपुणता देख मूर्तिकार बहुत प्रसन्न होता ! कृश की बनाई मूर्तियों में उसे कभी कोई दोष नहीं दिखाई देता था ! मूर्तिकार को कृश में अपनी ही छवि नज़र आती थी !
एक दिन मूर्तिकार ने विदेश से मिले एक आर्डर को पूरा करने का काम कृश को सौंपा ! कृश को अमेरिका के एक अरबपति की स्वर्गवासी प्रेमिका की मूर्ति बनानी थी! तस्वीरों की एक पूरी एलबम कृश के हाथ में थी, किन्तु कृश बार-बार गलती कर रहा था ! उसके सधे हुए हाथ छेनी-हथौड़ी का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे !
मूर्तिकार ने जब इसका कारण पूछा तो कृश रो पड़ा और बोला - राधा उससे प्यार नहीं करती ! वह उसे केवल अपना दोस्त मानती है ! उसका कोई बॉयफ्रेंड है और वह उसी से शादी करेगी !
मूर्तिकार गम्भीर हो गया ! उसने एक नज़र कोने में चादर से ढँकी कल्पना की मूर्ति पर डाली, फिर मुस्कुराया और कृश से बोला -"तुम्हें राधा क्यों पसन्द थी ?"
कृश तुरन्त ही कोई जवाब नहीं दे सका तो मूर्तिकार ने फिर पूछा - "तुम्हें राधा के शरीर का कौन सा हिस्सा बहुत पसन्द था ?"
"सब कुछ ! मुझे राधा का सब कुछ पसन्द था !" कृश ने कहा !
"ऐसा नहीं होता कृश !" मूर्तिकार बोला - " जब कोई एक पुरुष किसी एक स्त्री से प्यार करता है तो यह जरूरी नहीं होता कि उसे स्त्री का सब कुछ बेहतरीन लगता हो ! अच्छा बताओ, तुमने राधा के पैर देखे हैं ?"
"हाँ, घुटनों से नीचे के तो अच्छी तरह देखे हैं !" कृश ने कहा !
"तो बताओ - कैसे पैर हैं ? कैटरीना कैफ जैसे या दीपिका पादुकोने जैसे या किसी और के पैरों जैसे ?"
"नहीं, उसके पैरों में हलके-हलके बाल हैं, जैसे मर्दों के पैरों में होते हैं !" कृश ने बताया !
"इसका मतलब है - उसकी कमर जरूर पतली और छरहरी होगी ! जैसी दीपिका या कैटरीना की है या जैसे शादी से पहले करीना कपूर की होती थी ?" मूर्तिकार ने पूछा !
"नहीं ! उसकी कमर वैसी पतली नहीं है ! उसका पेट कुछ बाहर निकलता हुआ है ! और उसका बाकी शरीर भी आम लड़कियों के मुकाबले कुछ भारी है !" कृश ने कहा !
"अच्छा, तो फिर उसके चेहरे की ख़ूबसूरती बेमिसाल होगी ! जरूर वह जवान हेमा मालिनी जैसी ड्रीम गर्ल होगी ! या फिर ऐश्वर्य रॉय या सुष्मिता सेन से भी खूबसूरत चेहरा होगा उसका ?" मूर्तिकार ने अपनी बात कह कृश के चेहरे पर नज़र गड़ा दी !
"नहीं, ऐसा कुछ नहीं है !" कृश कुछ अनमना और नाराज सा होते हुए बोला !
"तो फिर कोई तो बात होगी, जो तुम्हें वह बहुत पसन्द है ! तुम उसे प्यार करते हो !" मूर्तिकार ने कहा !
"मुझे उसकी हर बात पसन्द है ! मैं उससे प्यार करता हूँ !" कृश तेज स्वर में बोला !
"प्यार करते हो, यह तो ठीक है ! पर उसकी हर बात अर्थात कौन-कौन सी बात तुम्हें पसन्द है ? ज़रा अच्छी तरह सोच कर बताओ, समझ लो तुम अपने गुरु से नहीं, एक दोस्त से बात कर रहे हो !" मूर्तिकार बोला !
"मुझे उसका हँसना, बोलना, मुस्कुराना बहुत पसन्द है ! जब वह बातें करती है तो दिल चाहता है, वह बोलती ही रहे और मैं सुनता रहूँ ! मैं उसके बिना ज़िन्दा नहीं रह सकता गुरु जी !" कृश ने कहा !
"पर वह तुमसे प्यार नहीं करती ! किसी और से प्यार करती है ! इसका मतलब है - वह जिससे प्यार करती है, वह तुम्हारा प्रतिद्वंदी, तुम्हारा दुश्मन हुआ ! यदि तुम अपने दुश्मन को जान से मार दो तो क्या वह तुमसे शादी कर लेगी?"
"पर गुरु जी, राधा के प्रेमी को मारने पर मैं पकड़ा भी तो जा सकता हूँ ! मुझे जेल हो जाएगी ! और राधा को जब पता चलेगा कि उसके प्रेमी को मैंने मारा है तो वह तो मुझसे नफरत करने लगेगी !" कृश बोला !
"नहीं, तुम पकडे नहीं जाओगे, क्योंकि राधा के प्रेमी को, तुम्हारे लिए मैं मारूँगा ! और उसे यह भी पता नहीं चलेगा कि मैंने तुम्हारे लिए उसके प्रेमी को मारा है ! पर उसके बाद क्या वह तुमसे शादी कर लेगी?" मूर्तिकार ने पूछा !
कृश सोच में डूब गया ! हाँ या ना, वह कुछ भी न कह सका !
"एक और आईडिया है, क्यों न राधा को ही जान से मार दिया जाए ! वह तुम्हारी न हो सके तो किसी की भी न हो सके ! आजकल प्यार में ज्यादातर सनकी आशिक ऐसा ही करते हैं ! मैं समझता हूँ - तुम्हें भी राधा को जान से मार देना चाहिए !" मूर्तिकार बोला !
"हाँ, मैं ऐसा ही करूँगा !" कृश कठोर स्वर में बोला ! एकाएक ही उसका स्वर राधा के लिए गहरी नफरत से भर गया था !
"पर कृश, फिर तुम ज़िन्दा कैसे रहोगे ? तुम तो कह रहे थे कि तुम राधा के बिना ज़िन्दा नहीं रह सकते !" मूर्तिकार ने कहा !
"मैं खुद को भी मार लूँगा !" कृश ने कहा !
"उससे क्या होगा ? राधा को मारकर तुम राधा के परिवार को दुखी करोगे और खुद को मारकर अपने परिवार को ! मरने के बाद शरीर और आत्मा का आपस में कोई रिश्ता नहीं रह जाता ! यदि राधा को मारकर तुम अपने आप को मारोगे तो भी और राधा को बिना मारे खुद को मारोगे तो भी, मरने के बाद जब तुम्हें राधा और उससे सम्बन्धित कोई बात याद ही नहीं रहनी तो तुम राधा को क्यों मारना चाहते हो ? अच्छा, मान लो तुम्हारी राधा से शादी हो जाती है और शादी के बाद तुम्हारे घर में आग लग जाती है और उस में राधा काफी जल जाती है या मर जाती है तो क्या तुम्हें दुःख नहीं होगा ?"
"दुःख होगा ! बहुत दुःख होगा !" कृश ने कहा !
"मतलब - वह तुम्हारी पत्नी होगी तो तुम्हें उसके जलने, मरने या बीमार पड़ने पर भी दुःख होगा, किन्तु वह किसी और की पत्नी बन जाती है तो तुम्हें उसे मारकर भी दुःख नहीं होगा ! यह कैसा प्यार है कृश?" मूर्तिकार ने कहा !
कृश कुछ न बोला !
"इसका मतलब है - तुम राधा को पाना चाहते हो ! उसे अपना बनाना चाहते हो ! उसे हासिल करना चाहते हो ?" मूर्तिकार ने प्रश्न किया !
"हाँ, मैं राधा को पाना चाहता हूँ ! उसे हासिल करना चाहता हूँ !" मन का सच कृश की जुबान पर आ गया !
"ठीक है, मैं तुम्हें राधा को हासिल करने का मौक़ा उपलब्ध कराऊँगा ! किन्तु सिर्फ एक दिन के लिए...!" मूर्तिकार ने कहा -"पर इसके लिए तुम्हें राधा की एक मूर्ति बनानी होगी ! ऐसी मूर्ति - जो एकदम सजीव सी लगे ! बना सकोगे - ऐसी मूर्ति ? मूर्तिकार ने प्रश्न किया !
"अवश्य बना सकूँगा !" कृश ने कहा !
मूर्तिकार ने कृश को अपने विशाल स्टूडियो का एक कमरा दे दिया, जहाँ खाने-पीने-सोने के अलावा सभी नित्य कार्यों से निवृत्त होने की पूरी सुविधा थी ! किसी भी आवश्यकता की पूर्ति के लिए दो-दो नौकर भी थे ! और फिर मूर्तिकार ने कृश से कहा कि वह राधा की ऐसी सजीव मूर्ति बनाये कि हर देखने वाले को ऐसा लगे कि मूर्ति अभी बोल उठेगी !
कृश दिन-रात काम में लग गया ! राधा की मूर्ति बनाने का एक जुनून सा छा गया था उस पर !
आखिर वह दिन भी आया, जब मूर्ति बन कर तैयार हो गयी ! कृश ने अपने गुरु मूर्तिकार को बुलाया और मूर्ति दिखाई ! सचमुच बड़ी ही नायाब मूर्ति थी ! देखते ही लगता था, जैसे अभी बोलने लगेगी, बात करने लगेगी !
"बहुत खूब कृश !" मूर्तिकार ने पूछा -"तुम अपनी कला से पूरी तरह सन्तुष्ट तो हो ?" मूर्तिकार ने पूछा !
"हाँ !" कृश ने कहा !
"ठीक है ! तुम अच्छी तरह स्नान करके आओ ! तब तक मैं इस मूर्ति में तुम्हारी राधा के शरीर और उसकी आत्मा को बुलाता हूँ ! तुम जब नहाकर लौटोगे तो तुम्हें यहां पर जीती-जागती राधा दिखाई देगी और इस कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द होगा ! इसके बाद पूरे चौबीस घण्टे तक राधा तुम्हारे पास होगी ! तुम उसके साथ जो चाहे करना ! पर ध्यान रहे चौबीस घण्टे बाद राधा का शरीर और आत्मा मूर्ति से गायब हो जाएँगी !" मूर्तिकार ने कहा!
कृश नहाने के लिए बाथरूम में गया तो मूर्तिकार ने भगवान् विष्णु के बताये मन्त्र का प्रयोग कर मूर्ति में प्राण फूँक दिए और फिर कमरे से बाहर निकल दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया !
पूरे चौबीस घण्टे एक मिनट के बाद मूर्तिकार ने कमरे के दरवाजे के बाहर से कृश को आवाज दी -"कृश ! मैं दरवाजा खोल रहा हूँ ! क्या तुम ठीक हो ?"
"जी गुरुदेव !" कृश की आवाज आई -"राधा चली गयी !"
मूर्तिकार ने दरवाजा खोला ! कृश सामने आया ! उसकी आँखें लाल हो रही थीं ! स्पष्ट था - वह एक पल के लिए भी सोया न था !
"यह चौबीस घण्टे तुमने कैसे बिताये कृश ? क्या तुमने राधा का शरीर अच्छी तरह भोगा ?" मूर्तिकार ने पूछा !
"नहीं गुरुदेव !" कृश आँखें नीची करके बोला !
"क्यों ?" मूर्तिकार ने तेज स्वर में पूछा !
"गुरुदेव, मैं सारी रात राधा की आँखों में देखता, उससे बातें करता रहा ! उसे तकलीफ देने या उसकी मर्जी के खिलाफ कोई हरकत करने की बात मेरे दिल में ही नहीं आई !" कृश ने कहा !
मूर्तिकार एक पल कृश की आँखों में देखता रहा ! फिर उसने आगे बढ़कर कृश को सीने से लगा लिया -"यही प्यार है मेरे बच्चे ! और प्यार तो बस प्यार होता है ! प्यार में कभी तकलीफ दी नहीं जाती ! जिसे प्यार करते हैं, उसे कोई चोट नहीं पहुँचाई जाती ! हम जिससे प्यार करते हैं - उसके सुख में सुखी और उसके दुःख में दुखी नहीं होते तो हमारा प्यार - प्यार नहीं ढोंग है, वासना है, शारीरिक भूख है, स्वार्थ है, प्यार नहीं है !"
और अचानक मूर्तिकार की आँखों में आँसू आ गए !
"आप रो रहे हैं गुरुदेव ?" कृश ने पूछा !
"हाँ, अचानक मुझे अपना प्यार याद आ गया !" मूर्तिकार कृश को स्टूडियो के उस कोने में ले गया, जहाँ कल्पना की मूर्ति एक चादर से ढँकी थी ! मूर्ति पर से चादर उठाकर मूर्तिकार ने कहा -"ये मेरी कल्पना है, जिससे मैं पागलपन की हद तक बेपनाह प्यार करता था ! और मैंने भगवान् से वरदान प्राप्त किया था कि किसी एक मूर्ति में - मैं चौबीस घण्टे के लिए प्राण फूँक सकता हूँ ! तब मेरे मन में अहंकार जागा और मैंने निश्चय किया कि कल्पना को किसी भी बहाने से अपने स्टूडियो में बुलाकर उसके सामने ही अपनी बनाई कल्पना की मूर्ति में प्राण फूँकूँगा और उसे दिखाऊँगा कि वह बेशक मुझे प्यार ना करे - मैं उसे बनाकर उससे प्यार कर सकता हूँ ! पर जब मैं कल्पना के घर पहुँचा, वह बहुत बीमार थी और पीड़ा से तड़प रही थी !
उसकी तकलीफ से मैं तड़प उठा ! मेरे मन ने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान कल्पना को बिलकुल ठीक कर दो, उसकी सारी पीड़ाएँ मुझे दे दो, पर उसे भला-चंगा स्वस्थ कर दो ! अपने स्टूडियो में आकर मैंने कल्पना की मूर्ति में प्राण नहीं फूँके, बल्कि उसे हमेशा के लिए एक चादर से ढँक दिया ! कृश, मैं समझ गया था कि कल्पना मुझसे प्यार करे या न करे, मैं उससे प्यार करने लगा हूँ - सच्चा प्यार ! और अपनी ऐय्याशी के लिए अथवा उसे पाने की जिद पूरी करने के लिए भी मैं उसे ज़रा सी भी तकलीफ नहीं दे सकता! कृश, यह शरीर नश्वर है ! एक न एक दिन हर शरीर को नष्ट होना ही है ! सुन्दर से सुन्दर शरीर भी कभी भी किसी दुर्घटना का शिकार होकर विकृत हो सकता है ! इसलिए प्यार करना हो तो इन्सान से प्यार करो, उसकी अच्छाइयों से प्यार करो ! कुछ क्षणों के मनोरंजन या अपनी खुशी के लिए किसी के तन और मन को कष्ट देना प्यार नहीं है ! प्यार तो बस प्यार है और यह एक ऐसा सुन्दर एहसास है, जिसका मुकाबला दुनिया की अन्य कोई अनुभूति नहीं कर सकती ! कृश, जानते हो, मूर्ति में प्राण फूँकने से पहले मैंने तुम्हें स्नान करने के लिए क्यों भेजा था, इसलिए कि राधा तुम्हें नकली न लगे ! तुम राधा की सजीव मूर्ति से स्वाभाविक व्यवहार करो ! मैं जानता था कि अगर तुम्हारा प्यार सच्चा होगा तो तुम नकली राधा से भी असामान्य व्यवहार नहीं करोगे ! उसे तकलीफ नहीं पहुँचाओगे ! कृश ! प्यार किसी के शरीर को पाने का नाम नहीं है ! किसी के दिल और दिमाग में बस जाने का नाम है ! मैं अपना प्यार, अपनी कल्पना को नहीं पा सका, किन्तु मुझे मालूम है -आज भी मैं एक अच्छे इन्सान और एक अच्छे दोस्त के रूप में उसके दिल में ज़िन्दा होऊँगा ! तुम भी अपने अच्छे व्यवहार से राधा के दिल और दिमाग में एक अच्छे इन्सान और एक अच्छे दोस्त बनकर ज़िन्दा रहो !"
प्रिय बन्धुओं ! आज देश में ह्त्या, आत्महत्या अथवा तेज़ाब फेंक कर किसी का चेहरा झुलसा देने की घटनाएँ इसीलिये होती हैं - क्योंकि लोग प्यार की मिठास का आनन्द लेना नहीं जानते ! शरीर की भूख को ही प्यार समझ लेते हैं !
ज़रा बताइये - एक ही जैसी हुबहू कद-काठी के पाँच पुरुषों को एक जगह खड़ा कर दिया जाये और उन सबके चेहरे छिपा दिए जाएँ तो उन में से किसी एक युवक को प्यार करने वाली स्त्री क्या अपने प्रेमी को बिना छुए पहचान सकेगी ! और इसी तरह हुबहू एक ही कद-काठी की पाँच स्त्रियों को खड़ा करके उनके चेहरे छिपा दिये जाएँ तो उन में से किसी एक स्त्री को प्यार करने वाला युवक अपनी प्रेमिका को बिना छुए पहचान सकेगा ! कहानियों में यह बात सम्भव हो सकती है, किन्तु सच्चाई भिन्न है!
अन्त में हम यही कहेंगे कि यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो अपने प्रेमी अथवा प्रेमिका को खुश देखकर खुश होइये! अपनी क्षणिक खुशी के लिए उसे तकलीफ देंगे तो आप भी जीवन में कभी खुश नहीं रह पायेंगे!