प्रेम बहुत मीठा शब्द है और शब्द से भी ज्यादा मीठा है - प्रेम ! लेकिन आज के युग में लोगों की घटिया और बाजारू सोच ने प्रेम को इतना सस्ता बना दिया है कि यह सोच कर ही घिन्न आने लगती है कि क्या प्रेम ऐसा होता कि जिसे चाहो - उसे ही चोट पहुँचाओ !
नहीं ! यह प्रेम नहीं है !
कोई बच्चा अपनी माँ को जी-जान से चाहता है !
हाँ ! यह प्रेम है !
और माँ भी अपने बच्चे को जी-जान से चाहती है !
यह भी प्रेम है ! इसे ममता, वात्सल्यता भी कहते हैं !
कोई भाई अपनी बहन को जी-जान से चाहता है !
यह भी प्रेम है !
और बहन अपने भाई को चाहे- यह भी प्रेम है ! इसे स्नेह कहते हैं !
किसी पति का अपनी पत्नी से शारीरिक रिश्ता होना ही प्रेम नहीं है ! पति का अपनी पत्नी के सुख-दुख का ख्याल रखना ही प्रेम नहीं है ! यह तो साथ रहते हुए रिश्तों का निभाव है ! यही बातें पत्नी के लिए भी लागू होती हैं ! दोनों के बीच प्रेम तो तब होता है - जब एक को दर्द एक हो और दूसरा तड़प उठे ! एक-दूसरे से दूर होने पर दूसरे के सुख और परेशानियों के ख्याल से ही दूसरा परेशान हो उठे ! जब बिना बोले भी दूसरे के दिल की बात पहला समझ ले ! जब सिर्फ आँखों को देखकर ही दूसरे के मन की बात समझ में आ जाये !
कई वर्ष पहले ब्रिटेन के 92 वर्षीय हॉवर्ड एटेबेरो और 82 वर्षीय सिंथिया रिग्स की कहानी 27 अगस्त 2014 के हिन्दी हिन्दुस्तान में छपी थी ! जब हॉवर्ड 28 साल के थे और सिंथिया 18 की थीं, तब हॉवर्ड को सिंथिया से प्रेम हुआ था ! पर तब हॉवर्ड इज़हार न कर सके, क्योंकि सिंथिया का एक बॉयफ्रेंड भी था ! फिर नौकरी अलग हो जाने से हॉवर्ड सिंथिया से दूर हो गए ! फिर बुढ़ापे में ऐसा समय आया - जब दोनों अकेले पड़ गए, तब हॉवर्ड ने हिम्मत करके सिंथिया को पत्र लिखा और आखिर उनका अपनी प्रेमिका से मिलन हुआ ! यह प्रेम का सुन्दर उदाहरण है ! यह सच्चा प्रेम था - अगर हॉवर्ड सिंथिया के शरीर का भूखा होता तो सिंथिया की शादी के बाद भी बासठ सालों में अन्जाम की चिन्ता किये बिना सिंथिया के घर हजार बार चक्कर लगा चुका होता !
पिछले दिनों बंगलौर की एक लड़की द्वारा अपने प्रेमी पर तेजाब डालने की घटना सामने आई - कारण प्रेमी सात साल से उसके साथ रिलेशनशिप में था और शादी के लिए उसने इन्कार कर दिया था ! यह प्रेम नहीं था ! दोनों एक-दूसरे की शारीरिक भूख मिटा रहे थे ! स्त्री को अपना शरीर देने के एवज में शादी करके अपना भविष्य सुरक्षित करना था, जो सम्भव होता न देख वह उग्र हो गई !
दिल्ली में भी एक ऐसी ही घटना हुई, जिसमें एक लड़के ने एकतरफा प्यार में लडकी के इन्कार पर उसे चाकुओं से गोद डाला ! यह भी प्रेम अथवा प्यार नहीं है !
यह शारीरिक आकर्षण के कारण - शरीर पाने का - हासिल करने का जुनून था ! पर हम ऐसे ही जुनून को अक्सर प्रेम अथवा प्यार का नाम दे देते हैं !
प्रेम तो मन और आत्मा में गहराई तक उतर जाने वाली वह अनुभूति है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है ! प्रेम में शरीर का भी महत्व है ! स्पर्श सुख देता है, किन्तु मन में पाप या वासना नहीं जगाता ! जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे दुख देना तो बहुत दूर की बात है, उसे दुखी देखकर ही दिल दुखी हो जाता है ! जिससे हम प्रेम करते हैं, उससे हाथ मिलाकर या गले लगकर असीम आनन्द की अनुभूति करते हैं ! किन्तु यह प्रेम निष्पाप और स्वार्थरहित होता है ! यह आनन्द भी वैसा ही होता है, जैसा एक बाप को अपनी बेटी को गले लगाकर होता है या एक माँ अपने बेटे को गले लगाकर महसूस करती है !
यह सही है कि आजकल रिश्ते भी कलंकित हो रहे हैं, पर आज भी दुनिया अच्छे लोगों से भरी पड़ी है ! हाँ बुरे लोगों की बुराई की चर्चा ज्यादा होती है, इसलिए अच्छे लोगों की अच्छाई को भी लोग सन्देह की नज़रों से देखने लगे हैं ! मुझे लगता है - टीवी- फिल्म और आज के ढोंगी बाबा लोगों के मन को विकृत करने में कटु भूमिका निभा रहे हैं ! जरुरत हैं लोगों को सही ढंग से शिक्षित करने की ! सही शिक्षा नीति बनाकर हम आज के बच्चों को स्वस्थ मस्तिष्क वाला नागरिक बना सकते हैं, जिससे ऐसी घटनाओं में कमी आ सके !
जब भी रिश्तों का खून करने वाला कोई किस्सा सुनता-पढ़ता या देखता हूँ - सोचता हूँ - संन्यासी बन जाऊँ और लोगों को सही ज्ञान बाँटू ! फिर सोचता हूँ - ऐसे में - ढोंगियों और ढोंगी बाबाओं के इस जमाने में मुझे भी कलंकित और अपमानित करने वाले स्वार्थी और नीच बुद्धि लोग पैदा हो जायेंगे ! और मैं बदनाम होना नहीं चाहता, इसलिए जहाँ हूँ - वहीं रहूँ, यही ठीक है !
प्रेम लेन-देन की एक सीधी सरल प्रक्रिया है !
प्रेम दो - प्रेम लो ! इसके सिवा कुछ नहीं !
जहाँ किसी ‘चाहत’ में लोभ-क्रोध-पाप और वासना हो, वह प्रेम नहीं है !
प्रेम में पाने की इच्छा और खोने का गम भी होना भी सम्भव और स्वाभाविक है, किन्तु न पाने अथवा खोने की स्थिति अथवा डर से उसे नुक्सान पहुँचाना, जिसे आप प्यार करते आये हैं - उचित ही नहीं है ! जब आप उसे किसी भी तरह का नुक्सान पहुँचाते हैं, जिससे आप हमेशा प्रेम करने का दम भरते आये हैं या दावा करते रहे हैं तो स्पष्ट है कि आप प्रेम नहीं करते - आपका सम्बन्ध स्वार्थ पर टिका होता है और अपने स्वार्थ की पूर्ति न होने से आप क्रोध और जुनून में आकर आपराधिक फैसला कर लेते हैं !
प्रेम कीजिये - निस्वार्थ भाव से प्रेम कीजिये ! प्रेम तो मन और आत्मा का सम्बन्ध है ! शरीर के लोभी बनकर प्रेम के खूबसूरत भाव को नष्ट मत कीजिये !
प्रेम को भक्ति की तरह कीजिये ! पूजा की तरह कीजिये ! जैसा प्रेम हनुमान जी को श्रीराम से था ! राधा जी और मीराबाई को श्रीकृष्ण से था - कुछ वैसा ही प्रेम कीजिये ! जानते हैं राधा जी अय्यन नामक ग्वाले की पत्नी थीं और मीराबाई राजा भोज की, किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण से – ‘भगवान से’ प्रेम किया ! किन्तु उसमें शरीर का कोई महत्व नहीं था, महत्व था अनुभूति का ! श्रीकृष्ण को चोट लगती थी तो राधा जी तड़प उठती थीं और राधा जी दुखी होती थीं तो श्रीकृष्ण दुखी हो उठते थे ! मीराबाई ने विष का प्याला पिया तो सारा विष श्रीकृष्ण ने पचा दिया !
शारीरिक आकर्षण अथवा शारीरिक भूख प्रेम नहीं है !
प्रेम तो किसी के प्रति अनुराग और भक्ति की पराकाष्ठा है ! इसीलिए हमेशा से यही कहा जाता रहा है - प्रेम ही पूजा है !
प्रेम करना है तो बिना किसी लालच के निस्वार्थ भाव से पूजा की तरह कीजिये ! जिसे आप प्यार करते हैं, उसके सुख में सुखी और दुःख में दुखी होइये ! अपने स्वार्थ के लिए उसे कभी तकलीफ मत दीजिये, जिससे आप प्यार करते हैं !