आत्महत्या या आत्मज्ञान
एक बार एक व्यक्ति अपने ही परिवार के कार्य के बोझ से दुःखी हो कर आत्महत्या के लिए एक पहाड़ी की उच्चतम चोटी की ओर तेजी से बढे जा रहा था।
वहीं एक संत ध्यान कर रहे थे। उन्होंने उस व्यक्ति को तेजी से ऊँचाई की ओर जाते देख लिया,
तो वो उसके पीछे चल दिए।
जब वो व्यक्ति चोटी तक पहुँच कर खडा हुआ, तो संत ने अचानक ही पीछे से उसके कंधे पर
जैसे ही हाथ रखा तो वो डर कर जोर से चिल्लाया
और "भूत-भूत" का शोर मचाते हुए पीछे की ओर भागने लगा !!
संत-- अरे ! तुम तो आत्महत्या करने लगे हो, तो फिर भूत से क्यों डरते हो ?
तुम भी तो ऐसा घोर अपराध करके भूत ही तो बनोगे !
वह व्यक्ति वही बैठ कर रोने लगा, रोते-रोते वह अपनी समस्या बताने लगा । कहने लगा -
"मैं अब जीना नहीं चाहता। इसलिए मैं अपना जीवन समाप्त कर रहा हूँ ।"
संत---तुम्हें पता है, तुम अपने सभी द्वार बंद कर रहे हो ! यदि तुम जीवित रहते हो तो बहुत से अच्छे काम करने की सम्भावना बनी रहती है ! सोचो - यदि तुम जीवित रहते हो तो अपनी सन्तान के लिए कुछ तो करोगे !
तब तुम्हारी कोई सन्तान या उसकी सन्तान कोई महान नेता या वैज्ञानिक या खिलाड़ी बन सकती है !
देश का और तुम्हारा नाम रोशन कर सकती है !
जीवित रहने पर बहुत से रास्ते सामने आयेंगे !
समस्याएँ होंगी तो उनके समाधान भी होंगे, पर यदि तुम आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध करते हो
तो तुम्हारे लिए सभी मार्ग बंद हो जाएँगे, और जानते हो -क्या दंड है, इस अपराध का ?
व्यक्ति -- नहीं तो ! संत --- मानव तन ईश्वर का दिया,
सबसे कीमती ईनाम है। क्योंकि मानव के रूप में तुम्हें ईश्वर ने अपने से मिलने का मार्ग दे दिया !
इसी रूप में तुम ईश्वर भक्ति भी कर सकते हो ! सिर्फ मानव रूप में ही तुम ईश्वर भक्ति करा सकते हो !
ईश्वर हर मानव को अपने से मिलन का मार्ग देता है पर जो उसके दिए तोहफे
का अपमान करता है - वह ईश्वर को प्रसन्न तो कभी नहीं कर सकता ! ईश्वर उसे *भूत* बना देता हैं
यानी कोई भी शरीर नहीं देता ! और वही आत्मा हजारों बरस बिना शरीर के भटकती रहती है।
उसका मन तृष्णा और विषय भोग के लिए तड़पता है । पर शरीर नहीं मिलता, तो वह शरीरधारी जीव को
ही परेशान करती है तथा ढेरों पाप अर्जित करती है ! उसे परलोक में इस लोक से भी अधिक कष्ट उठाने पड़ते हैं ! भूत, प्रेत, पिशाच जिन्न आदि इसी की कष्टप्रद अवस्था होती हैं।
क्या तुम परलोक में इस लोक के कष्टों से भी अधिक कष्ट उठाना चाहते हो ?
वहाँ तो तुम आत्महत्या भी नहीं कर पाओगे ! खूब तड़पोगे और कष्ट उठाओगे !
व्यक्ति -- हे महात्मा ! मुझे नहीं पता था कि
आत्महत्या इतना बड़ा
अपराध है ! पर मैं तो जीवन की समस्याओं
से परेशान हो गया हूँ ?
क्या करूँ ?
संत --- धैर्य रखो ! हर परेशानी का कोई न कोई समाधान होता है !
कभी वह जल्दी मिल जाता है तो कभी देर से सामने आता है
ईश्वर हमें मानव शरीर इसीलिए प्रदान करता है कि
हम हर मुसीबत और कठिनाई का सामना कर उसे प्रसन्न करें !
जबकि वो मानव को मुसीबतों से लड़ते देखता है तो कभी
न कभी उस पर प्रसन्न होकर उसे सुख और वैभव भी प्रदान
करता है !
तुम्हें धैर्यपूर्वक जीवन की हर समस्या का सामना करते
हुए ईश्वर को प्रसन्न करना है ! इस जन्म में न कर पाओ तो
अगले जन्म में !
अगले जन्म में भी उसे प्रसन्न न कर पाओ तो
उसके अगले जन्म में !
पर याद रहे - ईश्वर को प्रसन्न किए बिना
सद्गति नहीं मिल सकती ! सुख और वैभव नहीं मिल सकता !
आत्महत्या करके तो तुम अपने ही लिए दुख और कष्टों का
पहाड़ खड़ा करने जा रहे हो उससे मुक्ति पाने का तो कोई
मार्ग ही नहीं है !
अब यह तुमने स्वयं निश्चित और निर्धारित
करना है कि तुम थोड़े से दुख और कष्ट सहकर अपार सुख
और वैभव पाना चाहते हो या आत्महत्या करके हमेशा के लिए
स्वयं को कष्टों में घेरना चाहते हो !
ध्यान रहे - जीवन की हर समस्या के कई समाधान होते हैं !
पर आत्महत्या जैसे अपराध
का कोई समाधान नहीं है ! इसलिए सदैव भगवत चिन्तन, सत्संग करो !
मस्त रहो,
प्रसन्न रहो !