आत्महत्या करने के बहुत से कारणों में से कुछ विशेष हैं - असफलता, आवेश अथवा जीवन से विरक्ति।
असफलता - अक्सर लोग किसी एग्जाम में असफल होने पर इतने दुखी हो जाते हैं कि आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लेते हैं। अपनी असफलता की शर्मिन्दगी के कारण वे स्वयं को किसी को भी मुँह दिखाने लायक नहीं समझते, इसलिए अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं।
कभी-कभी असफलता का झटका तो इन्सान झेल जाता है , पर अपने ही परिवार के प्रियजनों के ताने या कर्कश शब्द , कटूक्तियाँ सहन नहीं होतीं।
ऐसे में क्षणिक आवेश में मनुष्य अपनी इहलीला समाप्त कर बैठता है। आत्महत्या कर लेता है।
आत्महत्या का विचार कर रहे व्यक्ति को ऐसे आवेश के समय ही संयम से काम लेना है। उसके निकट सम्बन्धियों को उसे कोई भी गलत कदम उठाने से रोकना है ।
सिर्फ एग्जाम की असफलता ही नहीं प्रेम में असफल होने पर भी, अक्सर युवा लड़के-लड़की सिर्फ इसलिए अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं, क्योंकि उनके परिवार को उनका रिश्ता मंजूर नहीं होता। यह तो ठीक नहीं है।
बच्चा जन्म लेता है। माँ-बाप, भाई-बहन तथा परिवार के लोगों के साथ अठारह-बीस साल बिताता है, लेकिन किसी से प्यार होता है तो प्यार में किसी भी कारणवश असफलता का शिकार होने के कारण आत्महत्या कर लेता है।
उस शरीर और आत्मा को नष्ट कर देता है, जो उसका तो होता है। पर उसे इस संसार में वह स्वयं नहीं लाया था। एक स्त्री और एक पुरुष का प्रेम उसे इस संसार में लाया था।
उसके माता-पिता का प्यार ही उसे इस संसार में लाया था।
असफलता और आवेश के अलावा जीवन से विरक्ति भी इन्सान को आत्महत्या के मार्ग पर ले जाती है। बीमारी, असफलता अथवा आर्थिक परेशानी के कारण इन्सान हिम्मत हार जाता है। सोचता है - ऐसे जीने से तो मर जाना अच्छा है। यही सोच तो हमने बदलनी है।
मर जाना या आत्महत्या करके अपने जीवन का अन्त कर लेना किसी समस्या का हल नहीं है। ज़िन्दा रह कर बहुत बेहतर मन्जिलें पाई जा सकती हैं। बस, धैर्य के साथ थोड़ा सा इन्तजार करना पड़ेगा। जीवन की गाड़ी का पहिया आगे बढ़ाते रहना होगा।
ज़रा सोचिये। विधाता ने आपको कुत्ते-बिल्ली या कीड़े-मकौड़ों का जीवन ना देकर, इस ब्रह्माण्ड के सर्वश्रेष्ठ प्राणी - इन्सान का, मनुष्य का जीवन दिया है।
इस जीवन को आत्महत्या करके नष्ट मत कीजिये।
विधाता की रचना का अपमान मत कीजिये।