जीवन से निराश क्यों हो जाते है लोग ?
यह जीवन है - इस जीवन का यही है रंग-रूप ! थोड़ी खुशियां, थोड़े ग़म हैं, थोड़े फूल तो थोड़े कांटे, थोड़ी छाँव है तो थोड़ी धूप !
दोस्तों ! किसी मशहूर शायर की यह पंक्तियाँ - शायद किसी गीत के बोल हों ! शायद ये आपने पहले भी कभी सुने हों !
भई, जिसने भी लिखा है - बहुत खूब लिखा है !
जीवन है तो इसमें जीवन का हर रंग भी होगा ही ! हर रंग होना भी चाहिए ! हर रंग होना ही चाहिए !
तो फिर दुःख का रंग आते ही - क्यों हमारा जीवन बदरंग हो जाता है ?
क्या आपने कोई ऐसी फिल्म देखी है, जिसमे एक स्त्री और एक पुरुष की खुशी-खुशी शादी होती है ! फिर उनके कोई बच्चा - लड़का या लड़की होती है ! फिर बिना किसी दुःख के वह लड़का या लड़की बड़ा हो जाता है ! फिर उसकी भी बिना किसी रुकावट के शादी हो जाती है और फिर उसके भी बच्चे हो जातें हैं !
कहीं कोई दुःख, कोई परेशानी, कोई उतार-चढ़ाव, कोई घटना या दुर्घटना भी होती ही नहीं है ! यह तो कुछ वैसी ही ज़िन्दगी हुई - जैसी हम बचपन में खेल -खेल में एक कहानी सुनाते हुए कहते थे -
एक था राजा -एक थी रानी ! दोनों मर गए ख़तम कहानी !
तो वन्धुओं, ऐसी कोई फिल्म बने - जिस में कोई दुःख ना हो ! कोई दुर्घटना ना हो ! कुछ भी बुरा ना हो ! सब कुछ अच्छा-अच्छा हो - क्या आप देखना पसन्द करेंगे ? चलो, एक बार आप देख भी लें, पर दूसरी, तीसरी, चौथी और फिर सारी की सारी वैसी ही फिल्म देखना पसन्द करेंगे आप ?
बोर तो नहीं हो जायेंगे आप ? ऐसी सारे सुखों ही सुखों वाली - सारी फिल्म देखते हुए ! ऐसी फ़िल्में - जिन में हीरो या हीरोइन या अन्य कोई भी कलाकार किसी को एक थप्पड़ तक न मारे !
अच्छी तरह सोच कर बताइये ! फिर यह भी बताइये कि असल ज़िन्दगी में जब फिल्मो जैसे दुःख-दर्द, परेशानियां सामने आती हैं तो क्या मतलब है हमारे हिम्मत हारने का ? किसलिए हम निराश हों ?
हमें तो अपनी किस्मत पर खुश होना चाहिए कि हमें अपनी ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का हर रंग देखने का अवसर मिल रहा है ! निराश क्यों होते हैं हम ? हम में कुछ अक्ल-वक्ल भी है या नहीं ?
जीवन से निराश क्यों हो जाते हैं हम लोग ?
निराश भी इस कदर कि अपना जीवन ख़त्म करने की सोचने लगते हैं ! आत्महत्या करने का विचार बना लेते हैं ! क्यों भला ?
हमारा दिमाग भी उसी कारखाने का बना होता है, जिस में किसी टॉपर का ,किसी प्रधान मंत्री का, किसी मुख्य मंत्री का और हर टॉप क्लास सेलिब्रिटी का दिमाग बना होता है ! किसी से कम नहीं होते हम !
कभी दुर्घटना में मरने वाले व्यक्तियों का पोस्ट मार्टम करने वाले डॉक्टर से पूछियेगा कि उसके द्वारा पोस्टमार्टम किये गए आखिरी बीस व्यक्तियों के दिमाग का वजन कितना-कितना था ! आपको पता चलेगा कि सभी के दिमाग के वजनों में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं था !
यानी एक टॉपर के दिमाग और एक फेल होने वाले शख्स के दिमाग के वज़न में बहुत ज्यादा अन्तर नहीं था ! ऐसा भी सम्भव है कि फेल होने वाले के दिमाग का वज़न टॉपर के दिमाग के वज़न से कुछ ग्राम ज्यादा हो !
अगर ऐसा है तो ज्यादा वज़न वाले दिमाग का व्यक्ति फेल क्यों हो जाता है ?
इसलिए कि वह अपने दिमाग का प्रयोग टॉपर के मुकाबले कम करता है और अगर करता भी है तो सही दिशा में नहीं करता !
दोस्तों, कोई व्यक्ति इसलिए असफल नहीं होता, क्योंकि उस में सफल होने की खूबियाँ नहीं होतीं ! इसलिए असफल होता है क्योंकि वह अपनी असफलताओं से निराश हो जाता है ! इतना निराश कि सफल होने की चाह ही खो बैठता है !
खुद को कभी निराश मत होने दीजिये ! सफलता आपके कदम अवश्य चूमेगी !
हम और आप - कोई भी - दुनिया के किसी भी टॉपर से कम नहीं हैं !