स्वभाव की उग्रता कम करें ! आजकल आप सबको कदम-कदम पर उग्र स्वभाव के लोग मिल जाएंगे ! वैसे तो हर इंसान का स्वभाव - उसके पारिवारिक परिवेश, रहन-सहन, शिक्षा और उसके लालन-पालन पर निर्भर करता है ! किन्तु सब कुछ अच्छा होने पर भी बहुतों का स्वभाव अच्छा नहीं रह पाता ! संस्कार कितने भी अच्छे हों ! जिन्हें बिगड़ना हो - बिगड़ ही जाते हैं! आजकल लोगों का स्वभाव बिगाड़ने के बहुत से तरीके हैं ! बड़े-छोटे शहरों में बिगड़े हुए लोगों का एक नया अन्दाज़ नज़र आने लगा हैं ! चाहे आप टीवी को दोष दें या यार-दोस्तों की सोसाइटी को ! अच्छे-भले शरीफ माँ-बाप की औलाद भी बिगड़ैल सांडों को भी मात करने लगी है ! क्यों ? कम्पटीशन बढ़ गया है ! पैसा कमाना मुश्किल नज़र आने लगा है ! चाहतें बढ़ती जा रही हैं ! पूरी तरह जवान होने से पहले ही लड़के को गर्लफ्रेंड और लड़की को बॉयफ्रेंड के बिना अपनी पर्सनलिटी जीरो लगने लगी है ! इसका सबसे बुरा असर पड़ा है - मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय लोगों के पारिवारिक रिश्तों पर ! बच्चे जब तेरह-चौदह की उम्र में पहुँचते हैं, तभी से उन्हें अपने माता-पिता, भाई-बहन की अपेक्षा बाहरी लोग ज्यादा अच्छे लगने लगते हैं ! लड़कों को पड़ोस की लड़कियों अथवा आंटियों से बात करना अच्छा लगने लगता है और लड़कियों को पड़ोस के लड़कों, मुंहबोले भाइयों और अंकलों से बात करना भाने लगा है ! अपोजिट सेक्स के प्रति किसी का भी आकर्षित होना स्वाभाविक है, किन्तु जहां यह आकर्षण अपने घर के रिश्तों को तार-तार करता हो, वहां यह आकर्षण क्राइम और व्यभिचार को जन्म देता है ! अंकल अपनी बेटी से भी कम उम्र की लड़कियों पर कुदृष्टि डालने लगे हैं तो लड़के उम्र का ख्याल ना कर आंटियों को भी ‘माल’ समझ कर मौके का फायदा उठाने की फिराक में रहने लगे हैं ! ऐसा नहीं है कि लड़कियाँ हमेशा इनोसेन्ट- भोली-भाली होते हैं , किन्तु वे लड़कों जितनी निडर नहीं होतीं, इसलिए माँ की परवाह बेशक न करें, उनमें बाप का डर अभी भी रहता ही है ! ऐसा नहीं है कि हर घर की यही दशा है, पर जिन घरों के बच्चे माँ-बाप का आदर करना भूल गए हैं ! या अपने बाप-माँ से बेहतर कमाने की वजह से माँ-बाप के प्रति उपेक्षा का भाव रखने लगे हैं, वहाँ बच्चों के व्यहवार में भयंकर कहलाने की हद तक बदलाव आया है ! माता-पिता उनसे कम अक्ल के हैं, यह सोच - अनचाहे ही उन बच्चों के दिल में सुपीरियॉरिटी कॉम्पलेक्स पैदा कर देती है ! कभी-कभी माँ-बाप से बात करने में या उनके किसी भी बात पर टोकने पर भी वे चिढ़ने लगते हैं ! जब बच्चे अपने घर से, माँ-बाप से विमुख होने लगते हैं ! घर के लोगों के बीच हँसते-मुस्कुराते-बातें नहीं करते, तब उनका स्वभाव कर्कश और उग्र होने लगता है ! यह उग्रता उनकी ज़िन्दगी को भी और लाइफस्टाइल को भी प्रभावित करती है ! किसी से भी बात करते हुए वे बहुत जल्दी टेम्परामेंट खोने लगते हैं ! बहुत जल्दी उन्हें गुस्सा आने लगता है ! उनकी किसी से भी ज्यादा समय तक दोस्ती नहीं रह पाती और ज्यादातर गलत किस्म के लोगों का साथ उन्हें सुहाने लगता है ! और फिर धीरे-धीरे गलत कार्यों में भी ऐसे बच्चे शामिल होने लगते हैं ! आजकल रोडरेज की घटनाएं बहुत होने लगीं हैं ! सड़क चलते किसी कार ने किसी बाइक या कार को छू दिया तो नई उम्र के लौंडे हों या सफ़ेद बालों वाले जेंटलमैन, सब मरने-मारने पर उतर आते हैं ! स्वभाव में यह उग्रता क्यों है भला ? इसलिए कि दिलों में प्यार कम हो रहा है ! किन्तु प्यार क्यों कम हो रहा है ? इसलिए कि अपने घर में लोग अपनों के बीच हँसते-मुस्कुराते नहीं ! साथ बैठ कर खाना नहीं खाते ! सालों पहले बड़े-बुजुर्ग अक्सर घर के लोगों को सिखाते थे कि दिन का खाना चाहे अलग-अलग जगह, अलग-अलग बैठ कर खाना पड़े, रात को सबको साथ बैठ कर एक साथ खाना खाना है ! अब वो चलन ही ख़तम हो गया है ! बड़े-बुजुर्गों की आजकल सुनता ही कौन है ? स्वभाव की यह उग्रता अक्सर बहुत खतरनाक हो जाती है ! कभी भी किसी मामूली सी बात पर लोग हत्या तक कर बैठते हैं ! आत्महत्या भी कर बैठते हैं ! स्वभाव की यह उग्रता कम करें ! अपने परिवार के लोगों से ज्यादा से ज्यादा प्यार करें ! सुबह-दोपहर-शाम जब भी अवसर मिले, परिवार के लोगों के साथ हँसे-बोलें-मुस्कुराएँ और कभी छुट्टी का दिन हो तो टीवी देखकर बिताने की जगह अन्त्याक्षरी खेलें ! या कोई ऐसा कोई खेल खेलें, जिस में सभी आपस में हँस-बोल सकें ! जहां परिवार में प्यार है - वहां दुर्गुणों की कोई जगह नहीं है ! बस, माता-पिता के संस्कार अच्छे होने चाहिए ! इन सब बातों का मतलब एक ही है - स्वभाव की उग्रता कम करें ! ना दूसरों को नुक्सान पहुँचायें, ना ही अपने आपको !