दिमाग ठण्डा रखें ! गर्म चीज़ एक लिमिट तक ही ठीक रहती है ! आप खौलती हुई किसी चीज़ में मुँह लगाओगे और बिना पल की देर किये हलक से नीचे उतारोगे तो मुँह तो जलेगा ही जलेगा, हलक भी ऐसा जलेगा कि हाय-हाय तो करोगे ही और हालत ऐसी हो जाएगी कि बाद में ठन्डे पानी के सिवा कुछ भी खाते न बनेगा ! कढ़ाही से उतरा पकोड़ा भी एकदम मुँह में डालिये, तब- जबकि उसका तेल भी न सूखा हो ! कुछ तो जीभ भी जलेगी ही ! मुँह से "शी-शी" भी निकलेगी ! सूरज चिलचिलाती गर्मी में जब अपने पूरे जोर पर हो ! टेम्परेचर 50 डिग्री से ऊपर जा रहा हो - रेगिस्तानी रेत कितनी देर नंगे पाँव चल सकेंगे ! कहने का मतलब है कि गर्मी एक लिमिट तक ही ठीक रहती है ! लिमिट - यानी कि सीमा या हद - है क्या ? कितनी है ? इस बारे में विचार करने से पहले, ज़रा एक नशेड़ी-शराबी मुस्तफा और उसकी बीवी फातिमा का किस्सा हो जाए ! बेचारी फातिमा परेशान थी मुस्तफा की आदतों से ! मुस्तफा ने चाय माँगी ! चाय बनाकर लाने से पहले फातिमा ने सोचा अंगीठी खाली क्यों रहे ! पहले सब्जी छौंक दूँ ! सब्जी छौंक कर फातिमा चाय ले आई ! उसके घर गैस तो थी नहीं कि झट से जलाई ! चाय बनाई और बुझा दी ! मुस्तफा ने चाय होठों से लगाई ! अगले ही पल प्याला फेंक कर फातिमा के सिर पर मारा - हरामजादी, ठण्डी चाय ले आई ! रसोई में क्या कोई यार बैठा रखा था, जिसके साथ सो रही थी ! फातिमा को एक हफ्ते तक सिर की पट्टी करवानी पडी ! बात यहीं तक होती तो फिर भी ठीक था ! लेकिन अभी आपके लिए बहुत कुछ जानना बाकी है ! मुस्तफा नशेड़ी शराबी तो था ही ! घर में रहने पर उसे थोड़ी-थोड़ी देर में चाय पीने की लत थी ! ठण्डी चाय के कारण सिर फुटवा चुकी फातिमा अब सतर्क रहने लगी थी ! फिर भी एक रोज सुबह-सुबह कहर फूट ही गया ! बच्चे को स्कूल भेजना था ! उसके लिए नाश्ता बनाना था ! मुस्तफा को सुबह फ्रेश होने से पहले चाय पीने की आदत थी ! उसने चाय माँगी ! फातिमा ने चाय बनाई ! फ़टाफ़ट छानी और मुस्तफा को पकड़ा कर तेजी से पलटी ! तभी गर्म-गर्म खौली हुई चाय उसकी गर्दन से सीने में टहलती चली गयी ! हुआ यह कि मुस्तफा ने जैसे ही चाय मुँह से लगाई, उसकी जीभ जल गयी ! वह तेजी से उठा और उसने पीछे से आकर चाय फातिमा की गर्दन से सीने में उड़ेल दी ! फातिमा की चीखें दर्दनाक थीं ! उसकी गर्दन और छातियों में जैसे आग सी लग गयी थी ! मुस्तफा हँसता हुआ बोला - उल्लू की पट्ठी ! अब आया मज़ा ! सवेरे-सवेरे मेरी जीभ जला दी ! कमबख्त चाय लाई थी या खौलता हुआ पानी ! आप लोग - जो यह किस्सा पढ़ रहे हैं ! अगर अब मुस्तफा की हिमाकत पर गुस्सा हो रहे हों, उसे गालियाँ निकाल रहे हों तो ज़रा ठहर जाएँ ! बेशर्मी और क्रूरता से हँसता हुआ मुस्तफा बाथरूम में घुस गया ! थोड़ी देर बाद जब अंडरवियर में बाहर निकला, उस पर पहाड़ टूट पड़ा ! गर्म-गर्म चिमटे और कड़छी उसके नंगे बदन पर धाड़-धाड़ पड़ रहे थे और फातिमा चिल्लाती जा रही थी - "ले हरामजादे ! तू भी मज़ा ले ले !" जितनी देर मुस्तफा बाथरूम में रहा - उतनी देर में फातिमा ने लोहे का चिमटा और कड़छी अंगीठी में आग की तरह तपा लिए थे ! बरसों से मुस्तफा का अत्याचार झेल रही थी, किन्तु उस दिन सहनशक्ति जवाब दे गयी ! सब काम छोड़, उसने आज मुस्तफा को ही सबक सिखा दिया ! मुस्तफा के गाल, आँख, नाक, पेट-पीठ-जांघ-हाथ-टांगों, शरीर के हर अंग को फातिमा ने वैसा ही मज़ा चखा दिया, जैसा मुस्तफा आये दिन उसे चखाता रहता था ! तो दोस्तों, हम क्या विचार कर रहे थे कि गर्मी एक लिमिट तक ही ठीक रहती है ! लेकिन यह लिमिट - यानी कि सीमा या हद - है क्या ? कितनी है ? सूरज की गर्मी हो या दिमाग की गर्मी ! गर्मी जब हद से बढ़ जाती है, नुक्सान ही पहुंचाती है ! इसलिए बेहतर है कि दिमाग को ठण्डा रखा जाए ! पर वो लोग क्या करें - जिनका बात-बात पर वीपी हाई रहता है ! गुस्सा हर पल जिनकी नाक पर धरा रहता है ! दिमाग की गर्मी से जिनका चोली-दामन का साथ है ! जो यह समझते हैं कि गुस्सा तो मर्द की शान है ! ऐसे लोगों से हम यही कहेंगे कि गुस्से को कण्ट्रोल करना कोई मुश्किल काम नहीं है ! लेकिन अपने गुस्से को उन्हें खुद ही कण्ट्रोल करना होगा ! दिमाग को ठण्डा रखना होगा ! वरना किसी दिन उन्हें भी कोई फातिमा टकरा सकती है ! वह फातिमा कोई औरत हो, मर्द हो, बच्चा हो या क़ानून ! नुक्सान तो गुस्सा करने वाले को ही होगा ! और फिर गुस्से का; दिमाग की गर्मी का, सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि जब यह अपने आप पर आता है सही गलत कुछ नहीं देखता ! अपनी भी जान लेकर ही शांत होता है, इसलिए आज क्या अभी से कसम खाइये कि गुस्सा नहीं करेंगे, दिमाग को ठण्डा रखेंगे ! हर मुस्तफा से हम यही कहना चाहते हैं कि दिमाग को ठण्डा रखे ! और हर फातिमा से भी हम यही कहेंगे ! वरना क्या होगा - मुस्तफा को पीटने के बाद पन्द्रह दिन तक उसे मरहम लगाने की परेशानी भी फातिमा को ही झेलनी पड़ेगी ! तो आप सब अपने आप से भी कहें और अपने दोस्तों को भी अच्छी तरह समझा दें कि ओज़ोन परत के कारण धरती गर्म हो रही है ! धरती का वातावरण गरम हो रहा है ! कम से कम मनुष्य को तो यही चाहिए कि अपने दिमाग को ठण्डा रखे !